Sunday, 12 March 2017

मन मस्त हुआ / अल्हड़ बीकानेरी

आदि से अनूप हूँ मैं, तेरा ही स्वरूप हूँ मैं
मेरी भी कथाएँ हैं अनन्त मेरे राम जी
लागी वो लगन तुझसे कि मन मस्त हुआ
दृग में समा गया दिगन्त मेरे राम जी
सपनों में आ के कल बोले मेरी बुढ़िया से
बाल-ब्रह्मचारी हनुमन्त मेरे राम जी
लेता है धरा पे अवतार जाके सदियों में
‘अल्हड़’ सरीखा कोई सन्त मेरे राम जी

~ मन मस्त हुआ / अल्हड़ बीकानेरी

No comments:

Post a Comment