Sunday 12 March 2017

सम्बन्धों के ठंडे घर में / अमरनाथ श्रीवास्तव

सम्बन्धों के ठंडे घर में
वैसे तो सबकुछ है लेकिन
इतने नीचे तापमान पर
रक्तचाप बेहद खलता है|

दिनचर्या कोरी दिनचर्या
घटनायें कोरी घटनायें
पढ़ा हुआ अखबार उठाकर
हम कब तक बेबस दुहरायें
नाम मात्र को सुबह हुई है
कहने भर को दिन ढलता है|

सहित ताप अनुकूलित घर में
मौसम के प्रतिमान ढूंढते
आधी उमर गुजर जाती है
प्याले में तूफान ढूंढते
गर्म खून वाला तेवर भी
अब तो सिर्फ हाथ मलता है|

सजे हुए दस्तरख्वानों पर
मरी भूख के ताने -बाने
ठहरे हुए समय सी टेबुल
टिकी हुई बासी मुस्कानें
शिष्टाचार डरे नौकर सा
अक्सर दबे पांव चलता है|

~ सम्बन्धों के ठंडे घर में / अमरनाथ श्रीवास्तव

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