Tuesday, 7 March 2017

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए / अदम गोंडवी

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
 अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए

 हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
 दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए

 ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले
 ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

 हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
 मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए

 छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
 दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए

~ हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए / अदम गोंडवी

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