Your Time
अंकुरित धरा से क्षमा व्योम से झरी रुपहली करुणा सरि, सागर, सोते-निर्झर-सा उमड़े जीवन: कहीं नहीं है मरना ।
नारा, जापान, 6 सितम्बर, 1957
~ धरा-व्योम / अज्ञेय
No comments:
Post a Comment