Saturday 11 March 2017

नन्दा देवी-4 / अज्ञेय

वह दूर
शिखर
यह सम्मुख
सरसी
वहाँ दल के दल बादल
यहाँ सिहरते
कमल
वह तुम। मैं
यह मैं। तुम
यह एक मेघ की बढ़ती लेखा
आप्त सकल अनुराग, व्यक्त;
वह हटती धुँधलाती क्षिति-रेखा:
सन्धि-सन्धि में बसा
विकल निःसीम विरह।

बिनसर, सितम्बर, 1972

~ नन्दा देवी-4 / अज्ञेय

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