नन्दा,
बीस-तीस-पचास वर्षों में
तुम्हारी वन-राजियों की लुगदी बना कर
हम उस पर
अखबार छाप चुके होंगे
तुम्हारे सन्नाटे को चींथ रहे होंगे
हमारे धुँधआते शक्तिमान ट्रक,
तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंगे
और तुम्हारी नदियाँ
ला सकेंगी केवल शस्य-भक्षी बाढ़ें
या आँतों को उमेठने वाली बीमारियाँ,
तुम्हारा आकाश हो चुका होगा
हमारे अतिस्वन विमानों के
धूम-सूत्रों का गुंझर।
नन्दा, जल्दी ही-
बीस-तीस-पचास बरसों में
हम तुम्हारे नीचे एक मरु बिछा चुका होंगे
और तुम्हारे उस नदी-धौत सीढ़ी वाले मन्दिर में
जला करेगा एक मरु-दीप!
सितम्बर, 1972
~ नन्दा देवी-6 / अज्ञेय
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