Your Time
जितनी स्फीति इयत्ता मेरी झलकती है उतना ही मैं प्रेत हूँ। जितना रूपाकार-सारमय दीख रहा हूँ रेत हूँ। फोड़-फोड़ कर जितने को तेरी प्रतिमा
मेरे अनजाने, अनपहचाने अपने ही मनमाने अंकुर उपजाती है-बस, उतना मैं खेत हूँ।
~ चक्रान्त शिला – 8 / अज्ञेय
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