Saturday 11 March 2017

चुप-चाप / अज्ञेय

चुप-चाप  चुप-चाप
झरने का स्वर
हम में भर जाए
चुप-चाप  चुप-चाप
शरद की चांदनी
झील की लहरों पर तिर आए,
चुप-चाप  चुप चाप
जीवन का रहस्य
जो कहा न जाए, हमारी
ठहरी आँख में गहराए,
चुप-चाप  चुप-चाप
हम पुलकित विराट में डूबें
पर विराट हम में मिल जाए--

चुप-चाप   चुप-चाऽऽप...

~ चुप-चाप / अज्ञेय

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