Saturday 11 March 2017

धूप / अज्ञेय

सूप-सूप भर
धूप-कनक
यह सूने नभ में गयी बिखर:
चौंधाया
बीन रहा है
उसे अकेला एक कुरर।

अल्मोड़ा
५ जून १९५८

~ धूप / अज्ञेय

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