किरण जब मुझ पर झरी मैं ने कहा
मैं वज्र कठोर हूँ-पत्थर सनातन।
किरण बोली: भला? ऐसा!
तुम्हीं को तो खोजती थी मैं
तुम्हीं से मन्दिर गढ़ूँगी
तुम्हारे अन्तःकरण से
तेज की प्रतिमा उकेरूँगी।
स्तब्ध मुझ को किरण ने
अनुराग से दुलरा लिया।
~ चक्रान्त शिला – 4 / अज्ञेय
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