Tuesday, 7 March 2017

अनुभव-परिपक्व / अज्ञेय

 माँ हम नहीं मानते--
अगली दीवाली पर मेले से
हम वह गाने वाला टीन का लट्टू
लेंगे हॊ लेंगे--
नहीं, हम नहीं जानते--
हम कुछ नहीं सुनेंगे।

 --कल गुड़ियों का मेला है, माँ।
 मुझे एक दो पैसे वाली
 काग़ज़ की फिरकी तो ले देना।
 अच्छा मैं लट्टू नहीं मांगता--
 तुम बस दो पैसे दे देना।

--अच्छा, माँ मुझे खाली मिट्टी दे दो--
मैं कुछ नहीं मांगूंगा:
मेले जाने का हठ नहीं ठानूंगा।
जो कहोगी मानूंगा।

~ अनुभव-परिपक्व / अज्ञेय

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