Tuesday, 7 March 2017

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में / अदम गोंडवी

न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
 तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से

 कि अब मर्क़ज़ में रोटी है,मुहब्बत हाशिये पर है
 उतर आई ग़ज़ल इस दौर मेंकोठी के ज़ीने से

 अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
 जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से

 बहारे-बेकिराँ में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा
 जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

 अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
 सँजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को क़रीने से.

~ ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में / अदम गोंडवी

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