Wednesday 8 March 2017

याद / अज्ञेय

 याद: सिहरन: उड़ती सारसों की जोड़ी
याद: उमस: एकाएक घिरे बादल में
कौंध जगमगा गई।
सारसों की ओट बादल
बादलों में सारसों की जोड़ी ओझल,
याद की ओट याद की ओट याद।
केवल नभ की गहराई बढ़ गई थोड़ी।
कैसे कहूँ की किसकी याद आई?
चाहे तड़पा गई।

काबूकी प्रेक्षागृह में (सैन फ्रांसिस्को), 21 मार्च, 1969

~ याद / अज्ञेय

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