Wednesday 8 March 2017

खुल गई नाव / अज्ञेय

खुल गई नाव
घिर आई संझा, सूरज
डूबा सागर-तीरे।

धुंधले पड़ते से जल-पंछी
भर धीरज से
मूक लगे मंडराने,
सूना तारा उगा
चमक कर
साथी लगा बुलाने।

तब फिर सिहरी हवा
लहरियाँ काँपीं
तब फिर मूर्छित
व्यथा विदा की
जागी धीरे-धीरे।

स्वेज अदन (जहाज में), 5 फरवरी, 1956

~ खुल गई नाव / अज्ञेय

No comments:

Post a Comment