Tuesday, 7 March 2017

हँसती रहने देना / अज्ञेय

जब आवे दिन
तब देह बुझे या टूटे
इन आँखों को
हँसती रहने देना!  

हाथों ने बहुत अनर्थ किये
पग ठौर-कुठौर चले
मन के  
आगे भी खोटे लक्ष्य रहे
वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे  

पर आँखों ने
हार, दुःख, अवसान, मृत्यु का
अंधकार भी देखा तो
सच-सच देखा  

इस पार
उन्हें जब आवे दिन
ले जावे
पर उस पार
उन्हें
फिर भी आलोक कथा
सच्ची कहने देना
अपलक
हँसती रहने देना
जब आवे दिन!

~ हँसती रहने देना / अज्ञेय

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