Tuesday, 7 March 2017

योगफल / अज्ञेय

 सुख मिला:
उसे हम कह न सके।
दुख हुआ:
उसे हम सह न सके।
संस्पर्श बृहत का उतरा सुरसरि-सा:
हम बह न सके ।
यों बीत गया सब: हम मरे नहीं, पर हाय! कदाचित
जीवित भी हम रह न सके।

जेनेवा, 12 सितम्बर, 1955

~ योगफल / अज्ञेय

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