Wednesday 8 March 2017

अलाव / अज्ञेय

 माघ: कोहरे में अंगार की सुलगन
अलाव के ताव के घेरे के पार
सियार की आँखों में जलन
सन्नाटे में जब-तब चिनगी की चटकन
सब मुझे याद है: मैं थकता हूँ
पर चुकती नहीं मेरे भीतर की भटकन!

नयी दिल्ली, दिसम्बर, 1980

~ अलाव / अज्ञेय

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