Tuesday, 7 March 2017

वसीयत / अज्ञेय

मेरी छाती पर
हवाएं लिख जाती हैं
महीन रेखाओं में
अपनी वसीयत
और फिर हवाओं के झोंकों ही
वसीयतनामा उड़ाकर
कहीं और ले जाते हैं।

बहकी हवाओ!
वसीयत करने से पहले
हल्‍फ उठाना पड़ता है
कि वसीयत करने वाले के
होश-हवाश दुरूस्‍त हैं:
और तुम्‍हें इसके लिए
गवाह कौन मिलेगा
मेरे ही सिवा?

क्‍या मेरी गवाही
तुम्‍हारी वसीयत से ज्‍यादा
टिकाऊ होगी?

~ वसीयत / अज्ञेय

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