Tuesday, 7 March 2017

रात में गाँव / अज्ञेय

 झींगुरों की लोरियाँ
सुला गई थीं गाँव को,
झोंपड़े हिंडोलों-सी झुला रही हैं
धीमे-धीमे
उजली कपासी धूम-डोरियाँ।

~ रात में गाँव / अज्ञेय

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